Updated Tue, 21 Nov 2023 08:28 PM IST
राजस्थान के रण में पारिवारिक मुकाबलों की खूब चर्चा हो रही है। जो कभी जिगरी दोस्त हुआ करते थे, पार्टियों ने उन्हें एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा है।
राजस्थान में इन दिनों विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा गर्म है। राज्य में नामांकन की प्रक्रिया खत्म होने के साथ ही सभी सीटों पर चेहरों की तस्वीर साफ हो गई है। इस बीच कई ऐसे घटनाक्रम आए हैं जिनसे राजस्थान का विधानसभा दिलचस्प हो चला है। कहीं 20 से अधिक बार हारने वाला प्रत्याशी चुनाव मैदान में है, तो कहीं जमीन बेचकर चुनाव लड़ रहा है।
पूर्व आईपीएस लक्ष्मण मीणा, रिटायर्ड आईएएस चंद्र मोहन मीणा
एक साथ खेले कूदे, पढ़ाई-नौकरी की, अब सियासी मैदान में
राजस्थान के रण में की जयपुर जिले में आने वाली बस्सी विधानसभा सीट की खूब चर्चा हो रही है। इस सीट की लड़ाई इसलिए चर्चा का विषय बनी हुई, क्योंकि यह उतरे प्रत्याशी कभी जिगरी दोस्त हुआ करते थे। यहां कांग्रेस ने पूर्व आईपीएस लक्ष्मण मीणा को चुनाव मैदान में उतारा है, जबकि भाजपा ने रिटायर्ड आईएएस चंद्र मोहन मीणा को टिकट थमाया है।
लक्ष्मण और चंद्रमोहन का बचपन साथ में गुजरा। दोनों आपस में रिश्तेदार हैं और इनके गांव भी आसपास ही हैं। दोनों ने एक ही स्कूल और एक ही कॉलेज से पढ़ाई की। जब 1980-बैच के अधिकारी चंद्रमोहन 1988 से 1990 तक जालोर कलेक्टर थे, तो 1982-बैच के अधिकारी लक्ष्मण वहां के जिला एसपी थे। जब चंद्रमोहन 2000 से 2002 तक बीकानेर संभागीय आयुक्त बने, तो लक्ष्मण को बीकानेर रेंज आईजीपी नियुक्त किया गया।
लक्ष्मण स्वैक्षिक सेवानिवृत्ति लेकर 2009 में सियासत में आए, जबकि चंद्रमोहन ने 2014 में सेवानिवृत्त होकर राजनीति में आए। सेवानिवृत्ति के बाद लक्ष्मण बस्सी से विधायक रहे हैं, जबकि चंद्रमोहन पहली बार चुनाव मैदान में हैं।
पति-पत्नी एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे चुनाव
प्रदेश की दूसरी सबसे चर्चित विधानसभा सीट सीकर जिले की दांतारामगढ़ है। यहां कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक वीरेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है जबकि उनके सामने उनकी पत्नी डॉ. रीटा सिंह हैं। रीटा को अजय चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने की तरफ से प्रत्याशी घोषित किया है। बता दें कि रीटा सिंह दिग्गज कांग्रेसी और पूर्व पीसीसी प्रमुख नारायण सिंह की पुत्रवधू हैं। वह वर्तमान में राजस्थान में जेजेपी के महिला मोर्चा अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रही हैं।
पिता के खिलाफ खड़ी है बेटी
अलवर जिले की अलवर ग्रामीण सीट पर पिता के सामने पुत्री चुनाव मैदान में उतरी है। इस सीट पर भाजपा ने जयराम जाटव को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पिता जयराम जाटव के खिलाफ उनकी बेटी मीना कुमारी चुनाव लड़ रही हैं। जयराम अलवर ग्रामीण विधानसभा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं।
पिछले दिनों जाटव परिवार का एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें बहन ने अपने भाई को चप्पल मार दी थी। दरअसल, जैसे ही मीरा जाटव को यह खबर लगी कि उनके पिता जयराम का नाम कुछ संभावित नाम में फाइनल है। इसको लेकर मीरा गुस्सा होकर अन्य दावेदारों के साथ जयपुर पार्टी मुख्यालय पर पहुंच गईं। इस दौरान जयराम और उनकी पुत्री मीरा के समर्थक आपस में भिड़ गए। इस बीच मीरा ने अपने ही भाई को चप्पल उठाकर मार दी।
विधायक शोभारानी कुशवाह
जीजा-साली के बीच टक्कर
धौलपुर जिले की धौलपुर विधानसभा सीट पर भी सगे-संबंधी एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। यहां सत्ताधारी कांग्रेस ने शोभारानी कुशवाह को टिकट दिया है। वहीं शोभारानी के सामने भाजपा ने उनके जीजा शिवचरण कुशवाह को मैदान में उतारा है।
बता दें कि पहले शोभारानी कुशवाह भाजपा की ही विधायक थीं लेकिन राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के आरोप में पार्टी ने उन्हें निलंबित कर दिया। शोभारानी ने 17 अक्तूबर को कांग्रेस में शामिल हो गईं। दूसरी तरफ जिस कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. शिवचरण कुशवाह को शोभारानी ने हराया था उन्होंने कुछ समय पहले कांग्रेस पार्टी को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था। अब इस सीट पर जीजा-साली की लड़ाई चर्चा का विषय बनी हुई है।
पांचवीं घटना: चाचा-भतीजे भी सियासी उलझन में
चूरू जिले की भादरा विधानसभा सीट पर चाचा-भतीजे के बीच मुकाबला है। यहां भाजपा की ओर से संजीव बेनीवाल को उम्मीदवार बनाया गया है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने उनके भतीजे अजीत बेनीवाल को चुनाव मैदान में उतारा है। बता दें कि संजीव बेनीवाल भाजपा से दो बार विधायक रह चुके हैं। बेनीवाल साल 1998 और 2013 में विधायक रह चुके हैं।
निर्दलीय प्रत्याशी तीतर सिंह
मनरेगा कार्यकर्ता 31वीं बार चुनाव में आजमा रहे किस्मत
मनरेगा कार्यकर्ता तीतर सिंह की दावेदारी ने श्रीगंगानगर की करणपुर सीट की लड़ाई को बेहद रोचक बना दिया है। 78 वर्षीय तीतर ने 1970 के दशक के बाद से 30 से ज्यादा चुनाव लड़े हैं और हर बार उनकी जमानत जब्त हो गई। तीतर के मुताबिक, उन्होंने पंचायत से लेकर लोकसभा तक हर चुनाव लड़ा है।
’25 एफ’ गांव निवासी तीतर सिंह दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। तीतर बताते हैं कि जब उन्हें लगा कि उनके जैसे लोग नहर कमांड क्षेत्र में भूमि आवंटन से वंचित हैं, तब उन्होंने 1970 के दशक में पहली बार चुनाव लड़ने का फैसला किया। उनकी मांग थी कि सरकार भूमिहीन और गरीब मजदूरों को जमीन आवंटित करे। इसके साथ ही जब भी मौका मिला, वे चुनाव मैदान में उतरने लगे। तीतर सिंह 31 बार करणपुर सीट से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं।