नीजेर में तख़्तापलट के बाद उठे सवाल, पश्चिमी अफ़्रीका में अस्थिरता के लिए फ़्रांस कितना ज़िम्मेदार
नीजेर में तख़्तापलट के बाद उठे सवाल
Update : 7 August 2023, 07:30 PM IST
पश्चिमी अफ़्रीका में बुरकिना फ़ासो, गिनी, माली और चाड के बाद अब नीजेर में भी सेना सत्ता पर काबिज़ हो गई है. दिलचस्प बात ये है कि ये सभी देश फ़्रांस के पूर्व उपनिवेश रहे हैं.
‘गुडबाय फ्रांस’ वाली तख़्ती दिखाते तख़्तापलट के समर्थक
वर्ष 1990 के बाद से अफ़्रीका के इस क्षेत्र में हुई तख़्तापलट की 27 घटनाओं में से 78% घटनाएं पूर्व फ़्रांसीसी उपनिवेशों में हुई हैं. ऐसे में राजनीतिक टीकाकार सवाल उठाने लगे हैं कि क्या इन सबके लिए फ़्रांसीसी उपनिवेशवाद या उसकी विरासत ज़िम्मेदार है? तख़्तापलट की इन तमाम साज़िशों से जुड़े लोग इस विश्लेषण को सही मानेंगे.
कर्नल मैगा कहते रहे हैं कि फ़्रांस ने माली की पीठ में छुरा भोंका है. उनका मानना है कि फ़्रांस ने नैतिकता का त्याग कर दिया है और वो नव-उपनिवेशवाद की नीति पर अमल कर रहा है.
बुर्किना फ़ासो में भी फ्रांस विरोधी विचार फल फूल रहे हैं. वहाँ भी सैन्य सरकार ने फ़्रांस के साथ लंबे वक़्त से जारी एक अहम समझौते को रद्द कर दिया है जिसके तहत फ़्रांस की सेना को बुर्किना फ़ासो में रहने की अनुमति थी. लेकिन इस वर्ष फ़रवरी में फ़्रांसीसी सेना को एक महीने के भीतर देश छोड़ने का आदेश दिया गया था.
नीजेर, बुर्किना फ़ासो और माली का पड़ोसी देश है. नीजेर के राष्ट्रपति मोहम्मद बज़ूम पर आरोप था कि वे फ़्रांस की कठपुतली थे. उन्हें सत्ता से हटाए जाने के बाद सैन्य प्रशासक अब्दुर्रहमान चियानी ने अब तक फ़्रांस के साथ पांच अहम सैन्य क़रार रद्द कर दिए हैं. सेना के सड़कों पर आने और राष्ट्रपति को हटाने के बाद लोगों से उनका जोर-शोर से स्वागत किया है. नीजेर में मौजूद फ़्रांस के दूतावास पर भी हमले हुए हैं.
फ्रांसीसी उपनिवेशवाद का काला सच
ऐतिहासिक दस्तावेज़ इन लोगों की ओर से दिखाई जा रही नाराज़गी को एक हद तक सही ठहराते हैं.
फ्रांसीसी उपनिवेशवाद ने एक ऐसा राजनीतिक तंत्र खड़ा किया था जिसका मकसद बहुमूल्य अफ़्रीकी संसाधनों को निकालने के साथ ही आम लोगों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए बल प्रयोग करना था. ब्रिटिश उपनिवेशवाद भी यही करता था लेकिन फ़्रांस का रवैया कुछ अलग रहा है. अफ़्रीका में पूर्व उपनिवेशों को आज़ादी तो मिल गई लेकिन फ़्रांसीसी हस्तक्षेप से निजात नहीं मिली.
कई आलोचक मानते हैं कि फ़्रांस अपने पूर्व उपनिवेशों को सियासत और अर्थव्यवस्था में भरपूर हस्तक्षेप करता रहा है. नौ में सात पूर्व उपनिवेश अब भी एएफ़ए फ़्रांस करेंसी का इस्तेमाल करते हैं इस करेंसी की गारंटी फ़्रांस देता है. ये फ़्रांस के आर्थिक दख़ल का सबसे बड़ा सबूत है.
फ़्रांस ने यहाँ ऐसे कई समझौते भी किए हैं जिनके ज़रिए वो अपनी पूर्व कॉलोनियों में अलोकप्रिय लेकिन फ़्रांस के हिमायती नेताओं को सत्ता में बनाए रखता है.
ऐसा करके फ़्रांस ने कई बार भ्रष्ट नेताओं का साथ भी दिया है. ऐसे नेताओं में चाड के पूर्व राष्ट्रपति इदरिस डेबी और बुर्किना फ़ासो के पूर्व राष्ट्रपति ब्लेस कांपोर का नाम लिया जाता है.
ऐसे भ्रष्ट नेताओं की वजह से इस क्षेत्र में लोकतंत्र मज़बूत नहीं हो पाया.
हालांकि, हाल में सेना ने जिन देशों से नागरिक सरकारों को सत्ता से बाहर किया है उन्हें वापिस गद्दी पर बिठाने का प्रयास नहीं किया है.
लेकिन हटाए गए सभी नेताओं को फ़्रांस का पक्षधर बताया जाता रहा है.