स्टालिन के उग्र तेवर, BJP नेता भी दे रहे साथ
दही का भला दक्षिण की सियासत से क्या रिश्ता हो सकता है? लेकिन राजनीति में सब कुछ संभव है. दक्षिण की राजनीति दही के नाम पर खट्टी हो गई है. डीएमके ने
देश भर में फूड सेफ्टी पर नजर रखने वाली स्वास्थ्य मंत्रालय की संस्था भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के आदेश ने दक्षिण की राजनीति में संवेदनशील रहे भाषा विवाद को फिर से सुलगा दिया है. दरअसल FSSAI ने दक्षिण भारत में दही बनाने वाली सहकारी संस्थाओं को कहा है कि वे दही के पैकेट पर दही ही लिखें.
तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन इस निर्देश पर बिफर पड़े. उन्होंने इसे हिंदी थोपना करार दिया और केंद्र की ओर इशारा करते हुए कहा कि ऐसा निर्देश देने वाले देश के दक्षिण भाग से गायब ही हो जाएंगे.
FSSAI ने जारी किए नए निर्देश
विरोध के बाद FSSAI ने गुरुवार को दही शब्द के उपयोग को लेकर नए दिशानिर्देश जारी किए. FSSAI ने अधिसूचना जारी कर दही के पैकेट पर क्षेत्रीय नामों के उपयोग की अनुमति दी है. अधिसूचना में कहा गया कि दही को इन नए उदाहरणों के अनुसार भी लेबल किया जा सकता है जैसे कि “कर्ड (दही)” या “कर्ड (मोसरू)” या “कर्ड (जामुत दोद)” या “कर्ड (तयैर)” या “कर्ड (पेरुगु).”
क्या था पुराना निर्देश
दरअसल कन्नड भाषा में दही को मोसारू (Mosaru) और तमिल में तयैर (Tayiar) कहा जाता है. इन दोनों ही राज्यों में दही के छोटे-छोटे कप पर अब तक यही नाम लिखा रहता है. लेकिन FSSAI ने अपने हाल के आदेश में कहा है कि इन राज्यों के मिल्क फेडरेशन दही के कप पर अब दही ही लिखें. FSSAI का निर्देश है कि दही के साथ ब्राइकेट में दही का स्थानीय नाम लिखा जा सकता है.
भड़क उठे स्टालिन
FSSAI के इस निर्देश पर भाषा विवाद को अक्सर हवा देने वाले तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. स्टालिन ने कहा है कि ‘हिंदी थोपने की बेशर्म जिद हमें हिंदी में दही के एक पैकेट पर भी लेबल लगाने के लिए निर्देशित करने की हद तक आ गई है, हमारे अपने राज्यों में तमिल और कन्नड़ को कमतर कर दिया गया है.’
स्टालिन ने आगे कहा है कि टहमारी मातृभाषाओं की इस तरह की निर्लज्ज अवहेलना यह सुनिश्चित करेगी कि जिम्मेदार लोगों को दक्षिण से हमेशा के लिए भगा दिया जाए.’
तमिलनाडु सीएम स्टालिन ने कहा कि FSSAI जो हमें अपनी मातृभाषा को दूर रखने को कह रहा है, अपनी मातृभाषा की रक्षा करने वाले हमलोगों की बात सुन ले. आप लोगों की भावनाओं का आदर करें, आप कभी भी बच्चे को चिकोटी काटने और फिर पालने को झुलाने के काम में लिप्त न हों. पालना हिलाने से पहले ही आप लापता हो जाएंगे.
बता दें कि दक्षिण के राज्यों में भाषा को लेकर बेहद संवेदनशीलता रही है और वहां की पार्टियां स्थानीय भाषाओं को लेकर काफी आग्रही रही हैं. तमिलनाडु में हिंदी के खिलाफ अक्सर आंदोलन होता रहता है. दही से जुड़ा ये विवाद जैसे ही एक अखबार में छपा डीएमके ने तुरंत इस मुद्दे को लपक लिया.
इस रिपोर्ट के अनुसार दही पर लेबल लगाने पर FSSAI का स्पष्टीकरण हाल ही में केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के दूध उत्पादक संघों द्वारा दही के पाउच पर स्थानीय नामों के उपयोग की मांग के बाद आया है. तमिलनाडु कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन को FSSAI ने कहा है कि तमिल शब्दों के लिए “tair” या “tayir” को ब्राइकेट में इस्तेमाल किया जा सकता है.