राष्ट्रीय

कृषि अर्थव्यवस्था का मजबूत संवाहक कौन है: पुरुष किसान या महिला किसान?…

वैश्विक कृषि बाज़ार में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है। पिछले एक दशक में भारत में खाद्य उत्पादन में जो तेज़ी आई है उसने हमारे देश को कई विकसित देशों से बेहतर स्थिति में ला खड़ा किया है।

कोविड-19 और यूक्रेन-रूस युद्ध से विश्व में खाद्य संकट पैदा हुआ उसमें भारत मजबूती से खड़ा नज़र आया।

दूध और दाल के उत्पादन में भारत सभी देशों से आगे हैं और चावल, गेहूं, फल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।

कृषि क्षेत्र में ये उपलब्धि इसलिए और खास हो जाती है क्योंकि विकसित देशों के मुकाबले भारतीय कृषि में तकनीक और मशीनीकरण न के बराबर है।

भारत में खेती मानव श्रम पर निर्भर है जिसमें महिला किसानों की भागीदारी 60-80 प्रतिशत की है, लेकिन जिनके बलबूते पर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है वो खुद कहीं नजर नहीं आतीं।

महिला किसानों की भूमिका की अनदेखी

सिर्फ भारत ही नहीं पूरे विश्व में महिला किसानों को उनका उचित श्रेय नहीं मिलता। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार पूरे विश्व का 50 प्रतिशत खाद्य उत्पादन महिलाएं करती हैं, फिर भी पुरुषों के मुकाबले उनकी स्थिति बेहद कमजोर है।

उन्हें लिंगभेद, कम मेहनताना और शोषण झेलना पड़ता है। ग्रामीण महिलाओं के योगदान और उनके हक दिलाने के प्रयास में UN हर साल 15 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाता है।

वर्ष 2018 से भारत में इस दिन को खास तौर पर महिला किसान की भूमिका को ध्यान में रखते हुए महिला किसान दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है।

महिला किसान को मान्यता देने की भारत की ये पहल इसलिए भी खास हो जाती है क्योंकि यूएन ने वर्ष 2026 को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला किसान वर्ष’ घोषित किया है।

चुनौतीपूर्ण कृषि क्षेत्रों में महिला किसानों की सफलता

ये महिला किसानों का सदियों का अनुभव ही है कि चुनौतीपूर्ण कृषि क्षेत्रों में इन्होंने अप्रत्याशित सफलता पाई है। भारत में सीमांत और छोटी जोत कुल जोत की 86 फीसदी है।

ऐसे में लागत के मुकाबले अच्छा उत्पादन काफी चुनौतीपूर्ण होता है। लेकिन महिलाओं ने संगठित होकर छोटे भूमि पट्टे पर सफल प्रयोग कर दिखाए हैं।

गुजरात के महिला स्वयं सहायता समूह सेवा (SEWA) ऐसा ही उदाहरण है। शुष्क भूमि प्रदेश में जहां कुछ भी पैदा नहीं होता था, छोटी जोत इन महिला किसानों ने मिलकर जलसंरक्षण के उपाय किये और खेती आरंभ की।

उपज को संसाधित उत्पाद बनाकर उसे SEWA के तहत मिल कर बेचा। आज ये समूह अपने उत्पादों के लिए देश भर में अपनी पहचान बना चुका है।

कठिन परिस्थितियों में हार न मानना और बेहतर से बेहतर समाधान निकालने का हुनर महिलाओं में स्वभावगत है और जलवायु परिवर्तन से कृषि क्षेत्र को मिलने वाली चुनौतियों के मद्देनजर महिलाओं की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है।

परंपरागत ज्ञान से टिकाऊ खेती में महिलाओं की भागीदारी

सुप्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ एमएस स्वामीनाथन के अनुसार विश्व में खेती का सूत्रपात महिलाओं ने ही किया था। इसकी वजह अपने परिवार के पोषण का उद्यम रही होगी।

आज भी कम संसाधन होते हुए भी ग्रामीण महिलाएं जैव विविधता और परंपरागत ज्ञान के माध्यम से अपने परिवार की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं।

आंध्र प्रदेश के दिदगी गांव की सम्माल अम्मा 3 एकड़ की असिंचित भूमि में 18 फसलों की किस्में लगाती हैं और वो भी बिना रासायनिक खाद इस्तेमाल किए। उनके परिवार को पूरे साल बाज़ार से खाने के लिए कुछ नहीं खरीदना पड़ता।

इसी तरह उड़ीसा के सूखाग्रस्त इलाके कोरापुट की आदिवासी महिलाओं ने अपने पारंपरिक ज्ञान से चावल की काला जीरा किस्म को विलुप्त होने से बचा लिया। एक समय था जब रिसर्चस ने कह दिया था कि काला जीरा चावल अगले 12 वर्षों में विलुप्त हो जाएगा।

कम उत्पादन की वजह से किसानों ने इसे उगाना बंद कर दिया था, लेकिन कोरापुट की आदिवासी महिलाओं की मदद से आज वहां के किसान न सिर्फ काला जीरा का उत्पादन कर रहे हैं बल्कि ई-कॉमर्स साइट्स पर बेचकर अब पहले से ज्यादा कमाई कर रहे हैं।

सतत विकास लक्ष्यों (SDG) और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए टिकाऊ खेती आज की सबसे बड़ी जरूरत है। टिकाऊ खेती के लिए परंपरागत ज्ञान एवं कृषि जैव विविधता और संरक्षण में महिला किसानों की भूमिका निर्णायक है।

महिला किसानों के योगदान की वैश्विक अनदेखी

कृषि दुनिया भर के देशों की अर्थव्यस्था की रीढ़ है। विकासशील देशों में कृषि में सबसे बड़ा योगदान महिलाओं का है लेकिन न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया भर में इस विशाल श्रमबल के योगदान को नज़रअंदाज़ किया जाता है।

कृषि को लेकर जब भी बात आती है तो पुरुषों को ही ध्यान में रखा जाता है। महिलाएं कृषि अर्थव्यवस्था के लगभग हर आयाम से जुड़ी हैं, फसल उत्पादन, पशुपालन, खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन व अन्य ग्रामीण उपक्रम, ईंधन और जल की व्यवस्था, कृषि वानिकी, व्यापार और विपणन जैसी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

ये तब है जब उनके लिए वातावरण न के बराबर अनुकूल है। सरकारी योजनाओं का लाभ महिला श्रमिकों को पुरुषों के मुकाबले कम भुगतान, बाज़ार की जानकारी और तकनीकी ट्रेनिंग के मामले में भी उन्हें पीछे रखा जाता है।

ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की साक्षरता भी पुरुषों के मुकाबले कम है, ऐसे में उनकी कार्यकुशलता का पूरा लाभ कृषि क्षेत्र को नहीं मिल पाता।

महिला किसानों के लिए सरकारी योजनाएं और प्रावधान

देश की आधी आबादी जब इतने बड़े पैमाने पर विषमता का सामना करती है तो आर्थिक उन्नति की रफ्तार पर इसका क्या असर होगा इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।

पिछले एक दशक में इस विशाल श्रमबल को सशक्त करने के लिए कई सरकारी योजनाएं लागू की गई हैं। राष्ट्रीय कृषि नीति में महिलाओं को घरेलू और कृषि भूमि दोनों में परसंयुक्त पट्टे देने जैसे नीतिगत प्रावधान किये गए हैं।

लेकिन परंपरागत पुरुष प्रधान समाज और सामाजिक रीति रिवाजों के चलते महिलाओं को भूमि का अधिकार मिलना फिलहाल एक चुनौती है, जिसका सीधा असर महिला किसान को मिलने वाली सुविधाओं पर पड़ता है।

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की विभिन्न लाभार्थी योजनाओं में महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान हैं। इसके अलावा ग्रामीण विकास मंत्रालय महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (MKSP) लागू कर रहा है इसके तहत ग्रामीण महिलाओं की स्थायी आजीविका का निर्माण करने के लिए व्यवस्थित निवेश करके उन्हें सशक्त बनाना है।

महिलाओं के उद्यम और उनके अनुभव का लाभ उठाने के लिए कृषि उत्पाद के मूल्यवर्धन के लिए महिला उद्यमियों और उत्पादक समूहों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

एग्री स्टार्टअप्स में महिलाओं को प्रोत्साहित करन के लिए खास प्रावधान हैं। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय संयुक्त रूप से कृषि सखियों का प्रशिक्षण आयोजित कर रहे हैं।

देश के 12 राज्यों में इसकी शुरुआत हो चुकी है। इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण महिलाओं को विभिन्न कृषि पद्धतियों को बारे में व्यापक प्रशिक्षण दिया जाता है, खेती से जुड़े अलग अलग कामों के माध्यम से किसानों की सहायता कर के 60-80 हजार रुपये की सालाना अतिरिक्त आमदनी अर्जित करने में सक्षम होंगी।

इन्हें लखपति दीदी का नाम दिया गया है। अब तक देश में 1 करोड़ लखपति दीदी तैयार हो चुकी हैं, सरकार का लक्ष्य 3 करोड़ लखपति दीदी तैयार करने का है। कृषि सखी कार्यक्रम के अंतर्गत लगभग 34 हज़ार कृषि सखियों को पैरा एक्सटेंशन वर्कर के तौर पर प्रमाणित भी किया जा चुका है।

टेक्नॉलॉजी की मदद से कृषि उत्पादकता में काफी तेज़ी आई है पर अक्सर टेक्नॉलजी का विकास पुरुष किसानों को ध्यान में रखकर किया जाता है।

सितंबर 2024 में लॉन्च की गई नमो ड्रोन दीदी योजना आमदनी बढ़ाने के साथ साथ इस मिथक को तोड़ने में और महिलाओं में तकनीक को लेकर होने वाली झिझक को दूर करने में सहायक होगी।

इस योजना के तहत 2024 से लेकर 2026 तक 15000 महिला स्वयं सहायता समूहों को खेती में इस्तेमाल के लिए ड्रोन दिए जाएंगे।

इन ड्रोन्स को चलाने के लिए सरकार महिलाओं को ट्रेनिंग देगी। ये स्वयं सहायता समूह किसानों को खाद और कीटनाशक छिड़कने के लिए ड्रोन किराए पर दे सकेंगे। सरकार 80 फीसदी या अधिकतम 8 लाख रुपये तक की सब्सिडी पर ड्रोन उपलब्ध कराएगी साथ ही Agri Infra Fund (AIF) के तहत बाकी की लागत पर भी ऋण की सुविधा होगी।

महिला किसानों के लिए प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम

ICAR के अंतर्गत CIWA भुवनेश्वर, महिला अनुकूल कृषि टेक्नॉलॉजी, कठिन परिश्रम को कम करने वाले औज़ार और उपकरण, आय सृजन, फसल विज्ञान, डेयरी, मत्स्य पालन और पशुपालन करने वाली महिलाओं की व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य पर प्रशिक्षण आयोजित करता है।

ICAR के तहत देश भर में बनाए गए 731 कृषि विज्ञान केंद्रों में भी महिला किसानों के लिए समय समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन प्रयासों का लाभ भी महिला किसानों को मिल रहा है। जहां छोटे किसान परिवार की महिलाएं बेहतर प्रशिक्षण के बाद अब न सिर्फ अपने परिवार के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर रही हैं बल्कि अन्य महिलाओं को भी ट्रेनिंग देकर मिलकर एक सफल व्यवसायी बनने की ओर अग्रसर हैं।

असम के जोरहाट जिले की नबोनिता दास और कोकराझार की सुचित्रा रॉय इसके उदाहरण हैं। KVK से मिले प्रशिक्षण के बाद इन दोनों की 5 हज़ार रुपये से भी कम की सालाना आय अब 1 लाख रुपये से ऊपर पहुंच चुकी है। सिर्फ गरीब परिवार ही नहीं कई मध्यवर्गीय किसान परिवारों की महिलाएं भी कृषि से जुड़ रही हैं और सफल हो रही हैं।

लेकिन इनकी संख्या अगर अनुपात में देखी जाए तो अभी बहुत कम है। समस्या ये है कि ज्यादातर योजनाओं का लाभ भूमि के स्वामी को मिलती है, जिसमें महिलाओं की संख्या 15 प्रतिशत से भी कम है। ऐसे में कृषि क्षेत्र के इस मजबूत और बेहद काबिल श्रमबल का पूरा लाभ लेने के लिए उसे सशक्त बनाने के लिए व्यापक कार्यक्रम की आवश्यकता है। जानकारों के मुताबिक पिछले 7 वर्षों में भारतीय कृषि क्षेत्र ने 5 प्रतिशत की उच्चतम वृद्धि दर हासिल की है, और अगर महिलाएं इसमें सक्रिय भूमिका निभाएं तो इसमें 2-3 प्रतिशत की और वृद्धि हासिल की जा सकती है।

The post कृषि अर्थव्यवस्था का मजबूत संवाहक कौन है: पुरुष किसान या महिला किसान?… appeared first on .

News Desk

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button