छत्तीसगढ़

एक साधारण गृहिणी से सफल उद्यमी बनने की प्रेरणादायक कहानी

लीलावती रजक ने बिहान योजना और स्व-सहायता समूह की मदद से आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम की

एमसीबी

छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के छोटे से ग्राम बंजारी डांड की एक साधारण गृहिणी, लीलावती रजक, आज महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की प्रतीक बन चुकी हैं। वे न केवल अपने परिवार के लिए आर्थिक संबल बनी हैं, बल्कि समाज की कई अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं। उनके जीवन का यह परिवर्तन एक साधारण शुरुआत से होकर एक असाधारण मुकाम तक पहुँचा है, जो यह दर्शाता है कि जब इरादे मजबूत हों और अवसर का सही उपयोग किया जाए, तो कोई भी असंभव नहीं।

संघर्ष की चुप्पी से आत्मनिर्भरता की पहली आहट
लीलावती का जीवन भी सामान्य ग्रामीण महिलाओं की तरह था। वे घरेलू कामों में व्यस्त रहती थीं और परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब थी। उनके पति नरेश्वर प्रसाद रजक खेतिहर मजदूर थे और थोड़ी-बहुत खेती भी करते थे, जिससे सालाना आय मात्र 40,000 से 50,000 रुपये के बीच होती थी। इस मामूली आय से पूरे परिवार का पालन-पोषण करना बेहद कठिन था। जीवन एक सीमित दायरे में बंधा था और ज़िंदगी की रफ्तार गरीबी के बोझ से थमी हुई थी। एक दिन दीदी अपने गांव के पास किसी अन्य स्व-सहायता समूह की बैठक में शामिल हुईं। वहाँ की महिलाओं का आत्मविश्वास, बातचीत का तरीका और उनकी जीवनशैली देखकर वे बहुत प्रभावित हुईं। दीदी ने पहली बार महसूस किया कि महिलाएं भी अपने दम पर कुछ कर सकती हैं। यही अनुभव उनके लिए प्रेरणा बन गया।

समूह की शक्ति और बिहान योजना का मिला साथ
उस दिन के बाद लीलावती ने "रानी अवंती महिला संकुल संगठन" के अंतर्गत "साक्षर भारत स्व-सहायता समूह" से जुड़ने का निर्णय लिया। समूह से जुड़ने के बाद उनका आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने समूह की बैठकों में नियमित भाग लेना शुरू किया। समूह की साप्ताहिक बैठकों ने दीदी को संवाद, योजना और सामूहिक सोच की समझ दी। बिहान योजना (छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन) के अंतर्गत उन्हें आरएफ (रिवॉल्विंग फंड) और सीआईएफ (कम्युनिटी इन्वेस्टमेंट फंड) की राशि प्राप्त हुई। इस राशि का उपयोग करके दीदी ने अपने जीवन का पहला बड़ा निर्णय लिया घरेलू स्तर पर स्वरोजगार की शुरुआत।

उद्यमिता की राह पर पहला कदम किराना दुकान से मिनी राइस मिल तक का सफर
लीलावती दीदी ने अपने घर के एक कोने में छोटा सा किराना दुकान खोला। यह उनकी पहली उद्यमिता थी। गाँव के लोगों को आवश्यक वस्तुएँ पास में मिलने लगीं, जिससे दुकान चल निकली। दीदी ने ग्राहकों की पसंद और जरूरतों को समझते हुए दुकान को व्यवस्थित किया और सेवा भाव से काम किया। यही कारण रहा कि उनकी दुकान लोकप्रिय होती चली गई। धीरे-धीरे मुनाफा बढ़ा तो लीलावती ने अगला साहसी कदम उठाया। उन्होंने बैंक लिंकेज योजना के तहत राशि लेकर एक मिनी राइस मिल खरीदी। यह निर्णय गाँव के किसानों के लिए भी लाभदायक साबित हुआ। अब किसानों को धान कुटवाने के लिए दूर नहीं जाना पड़ता था। यह कार्य दीदी की आय को और भी स्थायी और मजबूत बना गया। अब लीलावती दीदी न केवल किराना दुकान की मालकिन थीं, बल्कि एक सफल महिला उद्यमी भी बन चुकी थीं। उनकी सालाना आमदनी अब 1.5 लाख से 2 लाख रुपये तक पहुँच चुकी है। उन्होंने अपने परिवार के लिए पक्का मकान बनवाया है और बच्चों की पढ़ाई व स्वास्थ्य पर बेहतर ध्यान दे पा रही हैं।

एक दीदी, अनेक प्रेरणाएँ अपने गांव की महिलाओं के लिए बनी मिसाल
आज लीलावती अपने गाँव की उन महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं जो कभी खुद को केवल गृहिणी या मजदूर समझती थीं। वे अब खुद दूसरों को समूह से जोड़ने, जानकारी देने और उद्यमिता के लिए प्रोत्साहित करने का कार्य करती हैं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि समूह, योजना और प्रयास का सही समन्वय हो तो कोई भी महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकती है। वे बिहान कार्यालय से समय-समय पर मार्गदर्शन लेती रहीं और हर योजना का सही लाभ उठाया। यही कारण है कि वे आज स्वाभिमान के साथ न केवल अपना घर चला रही हैं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। उनकी सफलता की कहानी यह बताती है कि ग्रामीण परिवेश में भी यदि सही दिशा, मार्गदर्शन और आत्मबल हो तो महिलाएँ समाज को बदल सकती हैं। लीलावती दीदी ने यह कर दिखाया है। छत्तीसगढ़ की माटी में ऐसी अनगिनत लीलावती दीदियाँ जन्म ले रही हैं, जो स्वयं सहायता समूह और बिहान योजना की बदौलत आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो रही हैं।

News Desk

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button