रावण की सेना को परास्त करने के बाद, कहां गायब हो गई श्रीराम की 1 लाख वानरों की सेना? क्या हुआ उनके साथ?
लंका नरेश रावण ने जब माता सीता का हरण किया था, तो वनवास काट रहे श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण और वानरों की सेना के सहयोग से लंका पर विजय प्राप्त की थी. श्रीराम की जीत और लंकापति रावण की इस हार को बुराई पर अच्छाई की विजय के तौर पर हर साल हम मनाते हैं. श्री राम की इस विजय में वानर सेना ने पग-पग पर उनका साथ दिया था. लेकिन लंका की इस विजय के बाद आखिर ये वानर सेना कहां चली गई? क्या आपने कभी सोचा है कि रामायण की इस कथा में लंका विजय के बाद वानरों का क्या हुआ? फिर उसने कोई लड़ाई क्यों नहीं लड़ी या ये सेना कहां गायब हो गई? चलिए आपको इसके बारे में बताते हैं.
वानर सेना का क्या हुआ?
रावण की विशाल सेना के, वानरों की इस नौसिखए सरीखी सेना ने पसीने छुड़ा दिए थे. वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम-रावण युद्ध में वानर सेना की महत्वपूर्ण भूमिका थी. लेकिन इस सेना का क्या हुआ? वानर सेना के प्रमुख नेता और महान योद्धा सुग्रीव और अंगद का क्या हुआ. इन सवालों का जवाब रामायण के उत्तर कांड में दिया गया है. उत्तर कांड में उल्लेख है कि जब लंका से सुग्रीव लौटे तो उन्हें भगवान श्रीराम ने किष्किन्धा का राजा बनाया और बालि के पुत्र अंगद को युवराज. वानर सेना में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नल-नील कई वर्षों तक सुग्रीव के राज्य में मंत्री पद पर सुशोभित रहे. इन दोनों ने मिलकर वहां कई सालों तक राज किया. श्रीराम-रावण युद्ध में योगदान देने वाली वानर सेना सुग्रीव के साथ ही वर्षों तक रही. लेकिन लंका जैसे भीषण युद्ध जीतने वाली इस सेना ने बाद में कोई बड़ी लड़ाई नहीं लड़ी.
जिस किष्किंधा राज्य का जिक्र हो रहा है, वह आज भी है. किष्किंधा, कर्नाटक में तुंगभद्रा नदी के किनारे है. किष्किंधा के आसपास आज भी ऐसे कई गुफाएं और जगह हैं, जहां राम और लक्ष्मण रुके थे. वहीं किष्किंधा में वो गुफाएं भी हैं जहां वानर साम्राज्य था. किष्किंधा के ही आसपास काफी बड़े इलाके में घना वन फैला हुआ है, जिसे दंडक वन या दंडकारण्य कहा जाता है.
श्रीराम के राज्याअभिषेक में पहुंची थी सेना
लंका युद्ध के समय की बात करें तो श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो. इसके बाद विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील की मदद से वानरों ने पुल बनाना शुरू कर दिया. वानर सेना में वानरों के अलग अलग झुंड थे. हर झुंड का एक सेनापति था. जिसे यूथपति कहा जाता था. यूथ का मतलब था झुंड. लंका पर चढ़ाई के लिए सुग्रीव ने ही वानर तथा ऋक्ष सेना तैयार की थी, जिसमें वानरों की संख्या लगभग 1 लाख बताई गई है. माना जाता है कि लंका विजय के बाद ये विशाल वानर सेना फिर अपने अपने राज्यों के अधीन हो गई. क्योंकि अयोध्या की राजसभा में राम ने राज्याभिषेक के बाद लंका और किष्किंधा आदि राज्यों को अयोध्या के अधीन करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. ये वानर सेना राम के राज्याभिषेक में अयोध्या भी आई और फिर वापस लौट गई.